दोस्तो! पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने अपने जीवन में कई अवसरों पर हज़रत अली, हज़रत फ़ातेमा और उनके दोनों बेटों इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महत्व पर प्रकाश डाला। इसी के साथ वह इन लोगों की इज़्ज़त किये जाने के बारे में भी कहा करते थे। एक दिन उन्होंने कहा कि यह सच है कि ईश्वर के निकट मेरे भाई अली इब्ने अबी तालिब का विशेष स्थान है। उन्होंने कहा कि अली का महत्व ईश्वर के निकट इतना अधिक है कि अगर कोई भी पूरे विश्वास के साथ उनकी फ़ज़ीलत का उल्लेख करे तो ईश्वर उसके पहले के और बाद वाले पापों को माफ़ कर देगा। अगर कोई हज़रत अली की किसी एक फ़ज़ीलत को लिखे तो जबतक वह लिखी हुई बात बाक़ी रहेगी तबतक फरिश्ते उसके लिए प्रायश्चित करते रहेंगे। अगर कोई व्यक्ति हज़रत अली अलैहिस्सलाम की फ़ज़ीलत को अपने कानों से सुने तो ईश्वर उसके उन पापों को माफ कर देगा जो उसने कानों से अंजाम दिये होंगे। अगर कोई हज़रत अली की फ़ज़ीलत को अपनी आंखों से पढ़े तो ईश्वर उसके वे सारे ही गुनाह माफ़ कर देगा जो उसने अपनी आंखों से किये होंगे। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ओर मुख करते हुए कहा कि हे अली आप सूरे तौहीद की तरह हैं। जो भी आपको दिल से चाहता है, मानो उसने एक तिहाई क़ुरआन ख़त्म किया। जो लोग आपको चाहते हैं और आपके चाहने वालों की सहायता के लिए तैयार रहते हैं तो वे ऐसे हैं जैसे उन्होंने दो तिहाई क़ुरआन ख़त्म किया है। जो भी आपको दिल से चाहता हो और ज़बान से आपकी सहायता करता हो तो और आपकी सहायता के लिए आगे आए तो मानो उसने पूरा क़ुरआन पढ़ लिया।

मदीना वालों ने कई बार यह देखा कि पैग़म्बरे इस्लाम अपने नवासों हसन और हुसैन को अपने कांधों पर बैठाकर घुमाने ले जाया करते थे। वे अपने सीधे कांधे पर इमाम हसन को और बाएं कांधे पर इमाम हुसैन को बैठाते थे। एक बार अबूबक्र ने पैग़म्बरे इस्लाम को इसी स्थिति में देखा। उन्होंने कहा कि हे ईश्वर के दूत! इन दोनों बच्चों को एक साथ कांधे पर बिठाकर ले जाना आपके लिए कठिन है इसलिए एक को मुझे दे दीजिए। उनकी बात सुनकर पैग़म्बरे इस्लाम ने मुस्कुराते हुए कहा कि वे जिस सवारी पर हैं वह सवारी भी बहुत अच्छी है और सवारी पर जो लोग सवार हैं वे भी बहुत अच्छे सवार हैं। हालांकि इनका बाप इनसे अधिक श्रेष्ठ है।
यह कहने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि हे लोगो! क्या मैं तुमको उन दो के बारे में बताऊं जिनके नाना और नानी, सब लोगों से बेहतर हैं। लोगों ने कहा कि हां या रसूल्ललाह। इस पर आपने फरमाया कि हसन और हुसैन के नाना, ईश्वर के अन्तिम दूत हैं और उनकी नानी ख़दीजा, स्वर्ग की महिलाओं की प्रमुख हैं। फिर आपने कहा कि क्या मैं बताऊं कि उनके माता और पिता कौन हैं? लोगों ने कहा कि हां या रसूल्ललाह। आपने कहा कि उनके पिता अली इब्ने अबी तालिब हैं जबकि उनकी माता फ़ातेमा ज़हरा हैं जो अन्तिम ईश्वरीय दूत की सुपुत्री हैं। इसके बाद आपने कहा कि क्या मैं बताऊं कि उनके चचा और फूफी कौन हैं? लोगों ने कहा कि बताइए कि वे कौन हैं? आपने कहा कि उनके चाचा, जाफ़र इब्ने अबी तालिब और उनकी फूफी, अबू तालिब की बेटी उम्मे हानी हैं। अंत में आपने पूछा कि मुसलमानो! क्या तुम जानना चाहते हो कि हसन और हुसैन के मामूं और ख़ाला कौन हैं? जब लोगों ने कहा हां तो पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया कि हसन और हुसैन के मामूं, क़ासिम और उनकी ख़ाला ज़ैनब हैं। इसके बाद उन्होंने दुआ के लिए हाथ बढ़ाए और कहा कि हे ईश्वर तू जानता है कि हसन और हुसैन जन्नती हैं। उनके मां-बाप, नाना-नानी, दादा-दादी, चाचा, मामूं, ख़ाला और फूफी सब ही जन्नत में हैं। तो जो भी उन दोनों का अनुसरण करता है वह भी स्वर्ग में होगा।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बातें सुनने के बाद नज़्र बिन अलहारिस बहुत क्रोधित हुआ और आपे से बाहर हो गया। वह बहुत तेज़ी से पैग़म्बरे इस्लाम के निकट पहुंचा। उसने पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहा कि हे मुहम्मद! आप आदम की संतान के मुखिया हैं। अली अरब के सरदार हैं। आपकी सुपुत्री जन्नत की महिलाओं की सरदार हैं। उनके दोनों बेटे हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं। जब ऐसा ही है तो फिर क़ुरैश और अरब के लिए तो कोई स्थान बचा ही नहीं।
पैग़म्बरे इस्लाम ने नज़्र बिन अलहारिस की ओर ग़ौर से देखते हुए कहा कि ईश्वर की सौगंध! जिन पदों व स्थानों की बात तुमने की उनमें से एक भी मैंने नहीं दिया है बल्कि यह पद, स्थान या उपाधि ईश्वर ने उन्हें उनके महत्व के कारण दी है, इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम की इन बातों को सुनकर नज़्र बिन अलहारिस अधिक ग़ुस्से में आ गया। उसने ग़ुस्से में चीखते हुए कहा कि हे ईश्वर! अगर यह स्थान और महत्व तेरी ओर से है तो फिर आसमान से मेरे सिर पर एक पत्थर आकर गिरे और मुझको दर्दनाक दंड का सामना करना पड़े।
नज़्र बिन अलहारिस की बातें सुनकर पैग़म्बरे इस्लाम बहुत दुखी हुए। उन्होंने उसे समझाया। इस पर हर्स ने कहा कि शायद आप सही कह रहे हों लेकिन मेरे लिए यह सुनना बहुत ही कठिन है। यही कारण है कि मैं इस नगर से जाना चाहता हूं। यह सुनकर पैग़म्बरे इस्लाम ने उसको और अधिक समझाया-बुझाया। आपने कहा कि नज़्र बिन अलहारिस तुम अपने ईमान को मज़बूत करो और पापों के मुक़ाबले में धैर्य से काम लो। यह भी हो सकता है कि इस प्रकार की विशेषताएं ईश्वर तुम्हारे लिए विशेष कर दे। इस आधार पर ईश्वर के आदेशों को राज़ी-खुशी मानो क्योंकि ईश्वर कभी-कभी अपने बंदों की परीक्षा लेता है। हालांकि ईश्वर बहुत ही मेहरबान और कृपालु है।

नज़्र बिन हारिस अब भी अपनी बातों पर डटा हुआ था। वह मदीने से जाना चाहता था। पैग़म्बरे इस्लाम ने उसको जाने की अनुमति दे दी। वह अब मदीना से जाने की तैयार में लग गया और अपना बोरिया-बिस्तर समेटने लग। वह लगातार यही कहता जा रहा था कि हे ईश्वर, मुहम्मद ने अपने परिवार वालों के लिए जो बातें बताई हैं अगर वे वास्तव में सही हैं तो फिर आसमान से मेरे सिर पर पत्थर आकर गिरे। इसी दौरान सूरए अनफ़ाल की 32वीं और 33वीं आयतें नाज़िल हुईं जिनका अनुवाद इस प्रकार हैः और (याद कीजिए उस समय को) जब उन्होंने कहा कि प्रभुवर! यदि (मुहम्मद की कही हुई) ये बातें सत्य हैं और तेरी ओर से हैं तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा या हमारे लिए पीड़ादायक दंड भेज। (हे पैग़म्बर!) जब तक आप, लोगों के बीच हैं ईश्वर उन्हें दंडित नहीं करेगा और जब तक वे तौबा करते रहेंगे ईश्वर उन्हें दंड देने वाला नहीं है।
इन आयतों के संदर्भ में पवित्र क़ुरआन के जाने माने व्याख्याकार अल्लामा तबातबाई कहते हैं कि इस आयत में जिस अज़ाब की बात कही गई है वह पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र अस्तित्व के कारण अब नहीं आएगा क्योंकि जबतक अन्य मुसलमानों की ओर से ईश्वर प्रायश्चित का सिलसिला चलता रहेगा उस समय तक ऐसा अज़ाब नहीं आएगा। ज़मीन पर अज़ाब न आने के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा की 88वीं हिकमत में कहते हैं कि धरती पर ईश्वर के अज़ाब को रोकने वाली दो चीज़ें थीं जिनमें से एक उठा ली गई मगर दूसरी अब भी बाक़ी है। तो ऐसे में दूसरी अनुकंपा को पकड़े रहो। वह अनुकंपा जो उठा ली गई वह पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) का पवित्र अस्तित्व था जबकि जो ईश्वरीय अनुकंपा अभी भी मौजूद है वह है ईश्वर से प्रायश्चित।
ईश्वर कहता है कि ईश्वर उस समय तक उन पर अज़ाब नहीं भेजेगा जब तक पैग़म्बर का अस्तित्व मौजूद है और जब तक लोेग प्रायश्चित करते रहेंगे तबतक उन पर अज़ाब नहीं होगा। पैग़म्बर और उनके परिजनों के कथनों में भी इस बात पर बल दिया गया है कि पवित्र व भले लोगों के अस्तित्व के कारण ईश्वर लोगों को सार्वजनिक ढंग से दंडित नहीं करता। ईश्वर के प्रिय बंदों का अस्तित्व, दंड को रोकने का कारण है। उनके अस्तित्व का सम्मान करना चाहिए और उनके मूल्य को समझना चाहिए।तौबा व प्रायश्चित न केवल प्रलय के दंड को रोकता है बल्कि संसार के दंड को भी रोकता है अतः हमें उसकी ओर से निश्चेत नहीं रहना चाहिए।
दोस्तो! कभी-कभी हठधर्म, द्वेष और ईर्ष्या मनुष्य को इस सीमा तक ले जाती है कि वह अपने ही अंत के लिए भी तैयार हो जाता है। यह बात उल्लेखनीय है कि सूरे क़लम की आयत संख्या 8, सूरे हज की आयत संख्या 3 और 4 तथा सूरए फ़ुरक़ान की पांचवीं और छठी आयतों के नाज़िल होने के संदर्भ में भी नज़्र बिन हारिस के नाम का उल्लेख हुआ है।